‘पब्लिक बस हमारा हक़ (रीक्लेमिंग द बस)’ अभियान दिल्ली में मुफ्त, सुरक्षित और भरोसेमंद बस सेवा की मांग करता है। इस अभियान के जरिये हम रोजाना लाखों लोगों की आवाजाही की जरूरतों को पूरा करने वाली ‘दिल्ली की जीवन रेखा’ को मजबूत करने के पक्ष में बस यात्री समुदाय की आवाज को सामने ला रहे हैं। हम बस यात्रियों के नेतृत्व में एक ऐसा मजबूत आंदोलन बनाने का लक्ष्य रखते हैं जिसके जरिये राज्य हमारी मांगों को पहचाने और योजना में ‘जनता’ और इसके ‘परिवहन’ को प्राथमिकता दे।
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हर किसी ने महसूस किया है कि लॉकडाउन के पहले चरण के मात्र दो हफ्ते में ही शहरी वातावरण, ख़ास तौर से दिल्ली की हवा और नदी का पानी बिलकुल साफ़ हो गए। गाड़ियों के उत्सर्जन में अचानक आई कमी इसका प्रमुख कारण थी। हम सोच सकते हैं कि यदि सड़कों पर गाड़ियाँ न हों तो हमारे शहर कितने सुन्दर, सुरक्षित और स्वस्थ हो जायेंगे। इससे न सिर्फ हानिकारक उत्सर्जन में गिरावट आएगी बल्कि ट्रैफिक के कारण होने वाले एक्सीडेंट और मौतों की संख्या भी कम होगी। चूँकि प्रदूषित हवा में कोविड-19 का खतरा ज्यादा पाया गया है इसलिए भी जरूरी है कि हम अभी तुरंत गाड़ियों की संख्या में कमी लाने के लिए योजना बनाना शुरू करें।
वैश्विक जलवायु संकट, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारों की प्रतिबद्धता झूठी लगती है क्योंकि दिल्ली में शहरी परिवहन में अब भी फ्लाईओवर और सड़क को चौड़ा करती परियोजनाएं हावी हैं जो केवल गाड़ी का इस्तेमाल करने वालों की इच्छाओं को पूरा करती हैं, जहरीले उत्सर्जन को बढ़ावा देती हैं और एक तरह से सभी के लिए शहरी जीवन की गुणवत्ता को कम करती हैं।
दिल्ली में डीटीसी, डीआईएमटीएस द्वारा संचालित बसें रोजाना लगभग 50 लाख यात्रियों को लाती और ले जाती हैं। भारतीय जनगणना (2011) के अनुसार दिल्ली में काम पर जाने वाले 25 फ़ीसदी लोग बस से सफर करते हैं जबकि एक तिहाई से अधिक यात्राएं गैर-मोटर (पैदल, साइकिल) साधनों से हैं। हालाँकि, हालिया हफ़्तों में कारों और दुपहिये मोटर वाहनों ने सड़क पर दुबारा कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है। आधी क्षमता में बसें चलने के कारण जो लोग बसों पर निर्भर हैं उन्हें आवश्यक चीजों तक पहुँच पाने में बहुत दिक्कत हो रही है। इसके कारण शहरी आवाजाही को लेकर सामाजिक विभाजन स्पष्ट रूप से सामने आ गया है जहाँ सबके आवागमन को सुनिश्चित करने के बजाय वाहनों की तेज़ आवाजाही पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है। ऐसा लगता है कि जिनके पास निजी गाड़ियाँ है, उन्हें आने जाने का हक़ है पर जिनके पास निजी वाहन नहीं है, उन्हें शहर में चलने का हक़ नहीं है। यदि आवाजाही तक बराबर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए उपाय नहीं किये जाते तो कोविड लॉकडाउन प्रतिबंधों में राहत मिलने के साथ साथ यह विभाजन बढ़ता ही जायेगा।
कोविड-19 के दौरान और उसके बाद सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन प्रदान करके ही लोगों के आवागमन में भारी अंतर से बचा जा सकता है। अभी हम सब मिलके सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंताओं से जूझ रहे हैं और इस बीच हमें इस विचार का विरोध करने की जरुरत है कि कोविड के दौरान बस से यात्रा करना सुरक्षित नहीं है। इस समय इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि गैर-मोटर चालित परिवहन के साथ एकीकृत बस-आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली भारतीय शहरों के लिए पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ विकल्प है। इस संकट के समय में राज्य परिवहन अधिकारियों और संचालकों से एक सुचिंतित प्रतिक्रिया की दरकार है।
इस महामारी के दौरान और उसके बाद सुरक्षित शहरी आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए हम निम्नलिखित मांगें करते हैं:
बस सेवाओं को आवश्यक सेवाएं माना जाए
बस आवाजाही के अधिकार को दिलाने के लिए जरुरी वाहन है और इस तरह शहर पर जनता के अधिकार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन बसों की आवश्यक संख्या और वर्तमान संख्या में बहुत बड़ा अंतर है। इसलिए और बसों की खरीद करके उनकी संख्या 15,000 करनी चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द चलाना चाहिए। इस सम्बन्ध में सार्वजनिक रूप से एक समयसीमा की घोषणा होनी चाहिए। सभी बस स्टॉपों पर सुव्यवस्थित छाया, रौशनी, बैठने की व्यवस्था, सभी के इस्तेमाल करने लायक शौचालय, सेनेटरी पैड और अन्य जरुरी वस्तुएं/सेवाएं, वेंडर्स के लिए जगह और किसी बस स्टॉप से गुजरने वाले बस रूट की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। विभिन्न सार्वजनिक स्थानों और सड़कों को कार-मुक्त किये जाने के लिए योजना बनाई जानी चाहिये और सड़कों पर निजी वाहनों के एकाधिकार को ख़त्म किया जाना चाहिए।
बस कर्मियों को आवश्यक कर्मचारी माना जाए
बस कर्मियों के सुरक्षित और खुशहाल जीवन के लिए राज्य सरकार और बस ऑपरेटर को सीधे तौर पर जिम्मेदारी लेनी चाहिए। बस बेड़े में बढ़ोत्तरी को खासतौर पर महिलाओं के लिए सार्थक रोज़गार पैदा करने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। कर्मचारियों की नियुक्ति में लिंग और जाति के आधार पर न्याय सुनिश्चित करने की व्यवस्था होनी चाहिए और बस ड्राईवर के रूप में महिलाओं की नियुक्ति पर लगे बेतुके प्रतिबंधों को ख़त्म किया जाना चाहिए। महामारी के समय में भी ये कर्मचारी बस सेवा को चलाने के लिए जान का खतरा उठा रहे हैं तो इसलिए उनकी चिंताओं को प्रबंधन द्वारा प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
बस सेवा को सभी के लिए मुफ्त किया जाना चाहिए
सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये के लोग ऐतिहासिक रूप से आवाजाही और पर्यावरणीय रूप से अन्याय के शिकार रहे हैं सार्वजनिक परिवहन आवाजाही में न्याय और सामाजिक कल्याण के लिए एक साधन है। इसलिए हम यह मांग करते हैं कि सार्वजनिक परिवहन को सभी के लिए मुफ्त किया जाये। बस-आधारित सार्वजनिक परिवहन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में बस उपयोगकर्ताओं को उपभोक्ता के बजाय नागरिक समझना चाहिए।
सुरक्षा प्राथमिकता होनी चाहिए
सड़क दुर्घटनाओं पर उपलब्ध आंकड़ों की बात करें तो बस-आधारित सार्वजनिक परिवहन कमोबेश गंभीर सड़क दुर्घटनाओं से सुरक्षित है। बस में महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक क़दमों को तुरंत उठाया जाना चाहिए। कोविड के बीच, यह सुनिश्चित किया जाए कि बसें श्रमिकों के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं के लिए भी सुरक्षित रहें।
शहर में बस सबकी भरोसेमंद साथी हो
बस की खामियों और कठिनाइयों के बावजूद यात्री बसों को पसंद करते हैं। बस स्टॉप पर प्रतीक्षा करने के समय को कम करने के लिए जरुरी सुधार की जरुरत है। बसों की आवाजाही के लिए अलग लेन दी जाए और बस यात्रियों से बातचीत करने के लिए एक आधिकारिक चैनल स्थापित किया जाए ताकि बसों की योजना और संचालन में यात्री बराबर के हकदार बनें।
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